22 जुलाई 2025 को पृथ्वी की अपनी स्वाभाविक प्रक्रिया में एक विशेष बदलाव (second shortest day in history), देखने को मिला। इस दिन का समय “24 घंटे” की पारंपरिक अवधारणा से कुछ मिलीसेकेंड कम रहा, जिससे इसे रिकॉर्ड किया गया दूसरे सबसे छोटे दिन के रूप में। नीचे हम इसके सभी पहलुओं को सरल भाषा में समझते हैं।
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Second shortest Day on Earth: पृथ्वी के दिन की लंबाई क्या है?
हम एक सामान्य दिन को 24 घंटे यानी 86,400 सेकंड मानते हैं। लेकिन वास्तव में, पृथ्वी (shortest day on earth) का घूमना कभी स्थिर नहीं रहता। यह हर समय थोड़ा-बहुत बदलता रहता है। 24 घंटे बस एक औसत है। अंतरजिसे वैज्ञानिक “Day Length” या LOD (Length of Day) कहते हैं।
Second shortest Day on Earth: 22 जुलाई 2025 का दिन क्यों छोटा था?
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उस दिन पृथ्वी ने अपनी एक पूरी धुरी पर चक्कर केवल 1.34 मिलीसेकेंड (shortest day in history) पहले पूरा किया,जो की दूसरा सबसे छोटा दिन साबित हुआ ।अब तक का सबसे तेज़ दिन 5 जुलाई 2024 को दर्ज हुआ था, जब पृथ्वी ने सामान्य से 1.66 मिलीसेकंड तेज़ घूर्णन किया। इस वर्ष, 10 जुलाई ने सबसे छोटे दिन का स्थान हासिल किया है। वहीं, 22 जुलाई को अब दूसरा सबसे छोटा दिन माना जा रहा है, और इसके बाद 5 अगस्त का दिन आने वाला है, जिसमें अनुमानित रूप से दिन 1.25 मिलीसेकंड छोटा होगा।
Second shortest Day on Earth: क्या अनुभव हुआ साधारण जीवन में?
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इतने छोटे बदलाव लोगों की दैनिक ज़िंदगी पर असर नहीं डालते। हम इसे महसूस तक नहीं कर सकते।लेकिन उच्च-प्रौद्योगिकी प्रणालियों जैसे कि GPS, संचार, और परमाणु घड़ियाँ के लिए यह महत्वपूर्ण है। इन्हें इकाई स्तर पर समय की सटीकता चाहिए होती है।
Second shortest Day on Earth: क्यों तेज घूम रही है पृथ्वी?
(क) प्राकृतिक और मौसमी प्रभाव(shortest day on earth)
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गर्मियों में, उत्तरी गोलार्ध के तापमान में बदलाव से जेट स्ट्रीम धीमा पड़ जाता है, जिससे पृथ्वी की गति थोड़ी बढ़ जाती है।
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चंद्रमा की कक्षा विशेष रूप से उत्तर-दक्षिण झुकाव के समय—प्रत्येक ~18.6 साल—पृथ्वी की गति पर असर डालता है।
(ख) आंतरिक भूगर्भीय कारण
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पृथ्वी की द्रव आंतरिक कोर और भूगर्भीय गतियाँ धुरी की गति पर असर डालती हैं। कुछ विशेषज्ञ इसके पीछे इन्हीं कारणों को संभावित मानते हैं।
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ग्लेशियरों के पिघलने से द्रव्यमान में बदलाव आता है, जिससे भी विश्व की घूमने की गति प्रभावित होती है ।
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Second shortest Day on Earth: इतिहास में यह घटना कितनी सामान्य है?
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1973 में जब सबसे आधुनिक मापन शुरू किए गए, तब से अब तक सबसे छोटा दिन रहा । 5 जुलाई 2024 ,2025 में, 9 को भी कम दिन दर्ज हुए।
Second shortest Day on Earth: परिणामस्वरूप क्या बदलाव आ सकते हैं?
❏ Leap Second का समायोजन(second shortest day in history)
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जब पृथ्वी की गति में उतार-चढ़ाव होता है, तब UTC (Coordinated Universal Time) और ‘पृथ्वी-समय’ (UT1) में अन्तर बढ़ता है।
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परंपरागत रूप से, समय सुसंगति बनाए रखने के लिए “Leap Second” – यानी हर कुछ सालों में एक सेकंड जोड़ना पड़ता था। आखिरी बार ऐसा 2016 में हुआ था।
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अब शायद “Negative Leap Second”, यानी एक सेकंड घटाना पड़ेगा। यह पहली बार हो सकता है, और योजनाएँ बनाई जा रही हैं ताकि ~2029 तक इसे लागू किया जा सके ।
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Second shortest Day on Earth: क्या यह सामान्य दौर है?
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पृथ्वी का घूमना (second shortest day in history) ऊपर-नीचे होता रहता है। लंबे समय से यह धीमा हुआ करता था, लेकिन 2020 के बाद यह फिर तेज़ होता दिखा है ।विशेषज्ञ मानते हैं कि यह क्षणिक बदलाव हो सकता है, और भविष्य में फिर धीमा हो सकता है ।
Second shortest Day on Earth: क्यों पढ़ना जरूरी है?
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तकनीकी बुनियाद: GPS, बैकिंग सिस्टम, अंतरिक्ष संचार आदि अत्यधिक सटीक समय पर चलते हैं; इनके लिए ऐसी सूक्ष्म घटनाएँ मायने रखती हैं।
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वैश्विक समय प्रणाली: दुनिया भर के समय माप और विज्ञान के तरीकों में बदलाव आने की सम्भावना है।
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वैज्ञानिक अनुसंधान: धरती, मौसम, भूगर्भ, कोर—इनकी अंतर्क्रियाओं को समझने में सहायक है।
22 जुलाई 2025 को पृथ्वी ने अपना चक्र इतना तेज पूरा किया, कि वह रिकॉर्ड धारकों में दूसरे स्थान पर आ गया। यह कोई चिंता की बात नहीं, बल्कि विज्ञान की सूक्ष्मता की पुष्टि है। हम रोज़मर्रा के जीवन में कुछ भी महसूस नहीं करते, लेकिन तकनीकी दुनिया इस बदलाव को बारीकी से पकड़ती है।
इस तथ्य से पता चलता है कि पृथ्वी की गति स्थिर नहीं है, और यह वैज्ञानिकों के लिए शोध का जोलदार विषय है, जैसे कि जलवायु परिवर्तन, कोर की गतिविधि, और चंद्र-आधारित गुरुत्वीय संबंध। समय और हमारी तकनीकों की समझ का यह एक छोटा मगर महत्वपूर्ण आख्यान है।