दोस्तों, दिवाली… सिर्फ़ रोशनी का त्योहार नहीं है, बल्कि यह हम सबकी ज़िंदगी में प्रकाश, सकारात्मकता और आध्यात्मिक ऊर्जा का ऐसा उत्सव है जो हर दिल को उम्मीद, उल्लास और नई शुरुआत का हौसला देता है। हर साल जब हम दीप जलाते हैं, मिठाइयाँ बाँटते हैं और परिवार संग समय बिताते हैं, तो क्या कभी आपने ठहरकर सोचा है कि दिवाली के ये पाँच दिन (Meaning of 5 Days of Diwali) दरअसल क्या संदेश छिपाए हुए हैं?
हम में से अधिकतर लोग बस लक्ष्मी पूजा या दीयों की रोशनी तक ही सीमित रहते हैं, लेकिन सच यह है कि इन पाँच दिनों में हर दिन के पीछे एक गहरी कथा, एक सुंदर प्रतीक और एक भावनात्मक अर्थ छिपा है — जो हमारे स्वास्थ्य, समृद्धि, रिश्तों, कृतज्ञता और प्रकृति के साथ जुड़ाव को दर्शाता है।
तो आइए, इस लेख में साथ-साथ जानते हैं — धनतेरस का महत्व से लेकर भाई दूज का अर्थ तक हर दिन का अर्थ, महत्व, कहानी और वो भावनात्मक जुड़ाव जो इस पर्व को सिर्फ़ एक त्योहार नहीं, बल्कि जीवन दर्शन बना देता है।
1. धनतेरस का महत्व – स्वास्थ्य और समृद्धि का पहला दीपक
(धनतेरस का महत्व – Dhanteras significance)
दिवाली का पहला दिन “धनतेरस” कहलाता है। ‘धन’ का मतलब है समृद्धि और ‘तेरस’ यानी तिथि — कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी। मान्यता है कि इस दिन समुद्र मंथन से आयुर्वेद के देवता धन्वंतरि प्रकट हुए थे, जो अमृत कलश लेकर आए। इसलिए यह दिन स्वास्थ्य और दीर्घायु का प्रतीक माना जाता है।
लोग इस दिन सोना-चाँदी या पीतल के बर्तन खरीदते हैं। कहा जाता है कि नए सामान की खरीद सकारात्मक ऊर्जा और लक्ष्मी आगमन का प्रतीक होती है। लेकिन धनतेरस का महत्व सिर्फ़ खरीदारी तक सीमित नहीं है — यह हमें सिखाता है कि असली धन स्वास्थ्य है, और जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति “सुख-समृद्धि” नहीं बल्कि “स्वस्थ शरीर और मन” है।
2. नरक चतुर्दशी / छोटी दिवाली – बुराइयों को त्यागने का संकल्प
(नरक चतुर्दशी क्यों मनाते हैं/ छोटी दिवाली क्यों मनाते हैं – Naraka Chaturdashi/ Choti Diwali meaning)
दिवाली का दूसरा दिन नरक चतुर्दशी कहलाता है, जिसे अधिकांश लोग “छोटी दिवाली” के नाम से जानते हैं। यह दिन मुख्य दिवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है और इसका अपना खास धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है।
“छोटी दिवाली” का नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इस दिन भी दीप जलाए जाते हैं, घरों में रोशनी की सजावट होती है और वातावरण दिवाली जैसा ही उत्सवमय रहता है, लेकिन मुख्य लक्ष्मी पूजा अगले दिन की जाती है। इसलिए इसे दिवाली से पहले आने वाला “छोटा पर्व” कहा गया है।
इस दिन भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध किया था और 16,000 कन्याओं को उसके अत्याचार से मुक्त कराया था। यह विजय केवल एक युद्ध नहीं थी, बल्कि “अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और घमंड पर विनम्रता” की जीत थी।
आज भी इस दिन लोग सुबह स्नान कर तिल-तेल से शरीर को शुद्ध करते हैं, पुराने कपड़े दान करते हैं और घर-आँगन की सफ़ाई करते हैं। इसका प्रतीकात्मक अर्थ यही है कि जैसे कृष्ण ने नरकासुर का अंत किया, वैसे ही हमें भी अपने भीतर के अहंकार, ईर्ष्या, लालच और नकारात्मकता को त्याग देना चाहिए।
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3. लक्ष्मी पूजा – समृद्धि और कृतज्ञता का पर्व
(लक्ष्मी पूजा कथा – Lakshmi Puja story)
दिवाली का तीसरा दिन सबसे प्रमुख और शुभ माना जाता है — यह दिन होता है लक्ष्मी पूजा का। मान्यता है कि इस दिन माता लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं और स्वच्छ, उजले और प्रेम से भरे घरों में निवास करती हैं। लोग अपने घरों को दीपों से सजाते हैं, दरवाजे पर रंगोली बनाते हैं और मां लक्ष्मी-गणेश की पूजा करते हैं।
लेकिन लक्ष्मी पूजा केवल धन की देवी की आराधना नहीं है। यह हमें एक गहरा संदेश देती है — कि समृद्धि तभी स्थायी होती है जब हम कृतज्ञ रहना जानते हैं। जो कुछ हमारे पास है उसके लिए धन्यवाद करना, दूसरों के साथ बाँटना और सही कर्म करना ही सच्ची लक्ष्मी का स्वागत है।
लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त (Lakshmi Puja Muhurat 2025):
अगर आप सोच रहे हैं कि इस साल लक्ष्मी पूजा किस समय करनी चाहिए, तो जान लें कि 2025 में दिवाली के तीसरे दिन यानी 20 अक्टूबर (सोमवार) को यह शुभ अवसर आने वाला है। इस दिन अमावस्या की तिथि और पूजा का समय विशेष महत्व रखता है।
- लक्ष्मी पूजा शुभ मुहूर्त: शाम 07:08 बजे से 08:18 बजे तक (IST)
- अमावस्या तिथि आरंभ: 20 अक्टूबर 2025 – दोपहर 03:44 बजे
- अमावस्या तिथि समाप्त: 21 अक्टूबर 2025 – शाम 05:54 बजे
लक्ष्मी पूजा विधि (संक्षेप में):
लक्ष्मी पूजा को सही विधि से करने के लिए सबसे पहले घर और पूजा स्थान को अच्छी तरह साफ़ करें और दीप व रंगोली से सजाएं। पूजा स्थल पर माँ लक्ष्मी, भगवान गणेश और कुबेर की स्थापना करें। चंदन, फूल, धूप और मिठाई अर्पित कर श्रद्धा-भाव से पूजा करें।
माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मंत्र जपें। पूजा के बाद आरती करें और घर में दीप जलाएं ताकि समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का प्रकाश फैले। इस दिन घर के मुख्य द्वार पर स्वस्तिक बनाना और दीपक पूर्व दिशा में रखना शुभ माना जाता है।”
और पढ़ें: अगर आप जानना चाहते हैं कि 2025 में दिवाली कब है, लक्ष्मी पूजा विधि का सही समय, पूजा विधि, अमावस्या तिथि और पौराणिक कथाएँ क्या हैं, तो हमारा पूरा गाइड ज़रूर पढ़ें:
2025 में दिवाली कब है? तिथि, पूजा मुहूर्त, शुभ समय और पूजा विधि।
माना जाता है कि इस शुभ मुहूर्त में श्रद्धा और पूर्ण विधि-विधान से पूजा करने से माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद कई गुना अधिक प्राप्त होता है। इस समय दीप जलाना और आराधना करना घर में धन, सुख, सौभाग्य और समृद्धि के द्वार खोल देता है।
4. गोवर्धन पूजा का महत्व – प्रकृति और संरक्षण का संदेश
(गोवर्धन पूजा का महत्व – Govardhan Puja importance)
चौथा दिन गोवर्धन पूजा के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण ने इंद्र का अहंकार तोड़ते हुए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उँगली पर उठाया था, जिससे गोकुलवासियों को भारी वर्षा से बचाया जा सके।
यह कथा हमें बताती है कि प्रकृति ही असली ईश्वर है। खेत, पर्वत, पशु-पक्षी, जल-वायु — सबकी रक्षा करना हमारा धर्म है। आज भी इस दिन लोग “अन्नकूट” बनाते हैं और धरती माता को धन्यवाद देते हैं। गोवर्धन पूजा का महत्व हमें सिखाता है कि समृद्धि सिर्फ़ धन में नहीं, बल्कि प्रकृति के संतुलन में भी छिपी है।
5. भाई दूज का अर्थ/ यम द्वितीया – रिश्तों और प्रेम का उत्सव
(भाई दूज का अर्थ/ यम द्वितीया का अर्थ – Bhai Dooj festival meaning)
दिवाली का पाँचवाँ और अंतिम दिन भाई-बहन के अटूट प्रेम और विश्वास को समर्पित होता है, जिसे हम “भाई दूज” के नाम से जानते हैं। कई जगहों पर इसे “यम द्वितीया” भी कहा जाता है, क्योंकि इसके पीछे जुड़ी पौराणिक कथा में मृत्यु के देवता यमराज और उनकी बहन यमुना का विशेष उल्लेख मिलता है।
कहा जाता है कि इसी दिन यमराज अपनी बहन यमुना के घर पहुंचे थे, जहाँ यमुना ने उनका तिलक किया, आरती उतारी और मिठाई खिलाई। इससे प्रसन्न होकर यमराज ने वरदान दिया कि इस दिन जो भी भाई अपनी बहन के घर जाकर उसका तिलक करवाएगा, उसे लंबी आयु और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
इसलिए यह दिन केवल एक पारिवारिक रस्म नहीं है, बल्कि भाई-बहन के पवित्र रिश्ते की गहराई और पारस्परिक सुरक्षा एवं शुभकामना का प्रतीक है। आज भी देशभर में बहनें अपने भाइयों को तिलक लगाती हैं, उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं और भाई अपनी बहनों को उपहार देकर उनके स्नेह और भूमिका का सम्मान करते हैं।
भाई दूज का अर्थ हमें याद दिलाता है कि रिश्तों की सच्ची रोशनी केवल उपहारों में नहीं, बल्कि एक-दूसरे की देखभाल, विश्वास और अटूट प्रेम में बसती है।
पाँच दीपक, पाँच संदेश:
दोस्तों, इन पाँच दिनों का अर्थ समझकर दिवाली केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि जीवन की कला बन जाती है। अगर हम दिल से सोचें तो दीपावली के ये पाँच दिन केवल तिथियाँ नहीं हैं, बल्कि जीवन जीने के पाँच अमूल्य संदेश हैं, जो हमें हर साल याद दिलाते हैं कि सच्ची समृद्धि केवल धन में नहीं, बल्कि हमारे कर्मों, विचारों और रिश्तों में बसती है।
- धनतेरस – स्वास्थ्य और समृद्धि की नींव
- नरक चतुर्दशी – बुराइयों का अंत और आत्मशुद्धि का संकल्प
- लक्ष्मी पूजा – कृतज्ञता, सदाचार और साझा करने की भावना
- गोवर्धन पूजा – प्रकृति और संरक्षण के प्रति हमारी जिम्मेदारी
- भाई दूज – प्रेम, विश्वास और रिश्तों की गर्माहट
जब हम इन पाँचों संदेशों को अपने जीवन में उतार लेते हैं, तभी दिवाली की असली रोशनी हमारे भीतर जगमगाती है। इसलिए इस साल दिवाली मनाते समय केवल दीये ही नहीं जलाएं, बल्कि अपने भीतर के अंधकार को भी मिटाएं — क्योंकि यही है “Meaning of 5 Days of Diwali”: अंधकार पर प्रकाश की विजय, अच्छाई की जीत और हर रिश्ते में प्रेम की लौ।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ – Diwali 2025 Special):
Q-1. छोटी दिवाली किसे कहते हैं और कब मनाई जाती है?
उत्तर: छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है और यह दिवाली से एक दिन पहले मनाई जाती है। 2025 में छोटी दिवाली 19 अक्टूबर (रविवार) को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध किया था, इसलिए यह दिन बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है।
Q-2. धनतेरस (धनतेरस का महत्व) पर क्या खरीदना शुभ माना जाता है?
उत्तर: धनतेरस पर सोना, चाँदी, पीतल के बर्तन और स्टील के सामान की खरीद को शुभ माना जाता है। इसके अलावा, कुछ लोग इस दिन झाड़ू, बर्तन या इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भी खरीदते हैं क्योंकि माना जाता है कि यह माँ लक्ष्मी के आगमन और समृद्धि का प्रतीक होता है।
Q-3. लक्ष्मी पूजा कब करनी चाहिए और इसका सही मुहूर्त क्या है?
उत्तर: 2025 में लक्ष्मी पूजा 20 अक्टूबर (सोमवार) को मनाई जाएगी। शुभ मुहूर्त शाम 07:08 बजे से 08:18 बजे तक (IST) रहेगा। इस समय पूजा करने से माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में धन, सौभाग्य और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
Q-4. गोवर्धन पूजा (गोवर्धन पूजा का महत्व) क्यों मनाई जाती है?
उत्तर: गोवर्धन पूजा का महत्व भगवान कृष्ण द्वारा इंद्र देव के घमंड को दूर करने और गोकुलवासियों को भारी वर्षा से बचाने की स्मृति में मनाई जाती है। इस दिन लोग अन्नकूट बनाकर भगवान कृष्ण और धरती माता को अर्पित करते हैं। यह पूजा हमें प्रकृति संरक्षण और आभार व्यक्त करने का संदेश देती है।
Q-5. भाई दूज का अर्थ को यम द्वितीया क्यों कहा जाता है?
उत्तर: भाई दूज को यम द्वितीया इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना के घर तिलक करवाने गए थे। उन्होंने वचन दिया कि जो भाई इस दिन अपनी बहन के घर जाकर तिलक करवाएगा, उसकी आयु लंबी होगी और जीवन समृद्ध रहेगा। यह दिन भाई-बहन के प्यार, सुरक्षा और विश्वास का प्रतीक है।