Karpuri Thakur awarded Bharat Ratna: जननायक कर्पूरी ठाकुर को 2024 का भारत रत्न

Subah Times
Jannayak Karpuri Thakur-Bharat Ratna 2024
Jannayak Karpuri Thakur-Bharat Ratna-2024
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आज, 26 जनवरी 2024 को भारत सरकार द्वारा उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया है और  इसकी घोषणा भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू  द्वारा 23 जनवरी 2024 को किया गया था। भारत रत्न ऐसे समय में दिया गया है जब बुधवार (24 जनवरी) को कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती थी।

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कौन है बिहार के जननायक कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur):कर्पूरी ठाकुर जी (Karpuri Thakur) की जीवनी संक्षेप में–कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur) का राजनितिक सफर:कर्पूरी ठाकुर के महत्वपूर्ण कार्य:हिंदी मातृ भाषा की अनिवार्यता पर  जोर दिया:पिछड़ी जातियों के हित के लिए कार्य किया था:मजदूरों के हित के लिए अनशन करना:कर्पूरी ठाकुर जी के अन्य रोचक जानकारी:कर्पूरी ठाकुर जी से जुडी कुछ रोचक घटना जो उनको महान बनाता है:मुख्यमंत्री रहते हुवे वे कभी भी व्यक्तिगत कार्य के लिए सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल नहीं किये:बीमार पत्नी के लिए रिक्शा किराये पर लेना:दान की गई ईंटों से स्कूल को बनाना:अपने बहनोई को सिफारिश करने के बदले 50 रुपये दिये:भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर जी (Karpuri Thakur) को  देकर भारत रत्न की शोभा बढ़ी है:

उनकी लोकप्रियता बिहार में गरीब लोगों के उत्थान और पिछड़ी जातियों के लिए न्याय की अपनी समाजवादी नीतियों को बनाने और उसपर अमल कर जीवन प्रयन्त चलने के कारण थी। कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur) (24 जनवरी 1924 – 17 फरवरी 1988) भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ तथा बिहार राज्य के दूसरे उपमुख्यमंत्री तथा दो बार मुख्यमंत्री थे।

भारत रत्न के घोषणा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी खुशी जहीर करते हुवे सोशल मीडिया साइट एक्स पर जनता को संबोधित करते हुए कहा, मुझे खुशी है कि भारत सरकार ने सामाजिक न्याय के प्रतीक, महान जन नायक कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला किया है और वह भी ऐसे समय में जब हम उनका जन्म शताब्दी दिवस मना रहे हैं।”

कौन है बिहार के जननायक कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur):

सीधे साधे और सरल स्वभाव के जननायक कर्पूरी ठाकुर जी (Karpuri Thakur) का जन्म बिहार राज्य में, समस्तीपुर के पितौंझिया गांव में 24 जनवरी, 1924 को हुआ था। जो अब यह गांव कर्पूरीग्राम के नाम से जाना जाता है। उनकी पढ़ाई बिहार में हुई है मगर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण अपनी शिछा पूरी नहीं कर पाये थे। उनके पिता का नाम गोकुल ठाकुर और मां का नाम रामदुलारी देवी था।

वे समाज के सबसे पिछड़े वर्गों के नाई समाज से आते थे। वे मिलनसार व्यक्तित्व के और जन मानस के प्रत्येक तबके के दुःख और सुख में हमेशा सह भागी बनने को तत्पर रहने के इस मानवीय गुणों के कारण वे जननायक की उपाधि से विभूषित हुवे थेऔर बिहार के लोग उन्हे इसी ‘जननायक’ उपाधी से बुलाते थे।

वे बिहार के प्रमुख नेताओं जिसमे लालू प्रसाद यादव, राम विलास पासवान, देवेन्द्र प्रसाद यादव और नीतीश कुमार जैसे प्रमुख बिहारी नेताओं के गुरु कहे जाते हैं। उन्हें मुख्य रूप से बिहार के पिछड़ी जातियों को मजबूत करने और उनके उत्थान के लिए प्रयास किये जाने के लिए जाना जाते है।

कर्पूरी ठाकुर जी (Karpuri Thakur) की जीवनी संक्षेप में

पूरा नामकर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur)
उपनामजननायक
जन्म तारीख24 जनवरी, 1924
जन्म स्थानबिहार राज्य के समस्तीपुर जिला, पितौंझिया गांव में
पितागोकुल ठाकुर
मातारामदुलारी देवी
पत्नीफुलमनी देवी
बच्चेंराम नाथ ठाकुर, मनोरमा शर्मा, पुष्पा कुमारी देवी, सुशीला देवी
धर्महिन्दु
जातिनाई (हज्जाम)
योग्यताबीए- बैचलर ऑफ आर्ट्स ( ड्रॉपआउट)
राजनीतिक यात्रासोशलिस्ट पार्टी (1952-1973), भारतीय क्रांति दल (1973-1977) और जनता पार्टी (1977-1979)
उपलब्धिबिहार के मुख्यमंत्री दो बार दिसंबर 1970 से जून 1971 तक (सोशलिस्ट पार्टी/भारतीय क्रांति दल), और दिसंबर 1977 से अप्रैल 1979 तक (जनता पार्टी)
मृत्यु17 फ़रवरी 1988
सर्वोच्च पुरस्कारभारत रत्न (26 जनवरी 2024)- मरणोपरांत

कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur) का राजनितिक सफर:

कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) का राजनितिक रुझान शिक्षा के दौरान ही सुरु हो गई थी। शिक्षा के दौरान राष्ट्रवादी विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने एक छात्र कार्यकर्ता के रूप में ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन ज्वॉइन किया था और फिर उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का निर्णय लिया, जिसके लिए उन्होंने अपने स्नातक की पढ़ाई अधूरी छोड़ दी थी।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने और ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने के कारण अंग्रेजों ने ठाकुर को जेल में डाल दिया गया जहाँ उन्होंने जेल में करीब 26 महीने बिताये।

देश को आजादी दिलाने में कर्पूरी ठाकुर का योगदान प्रमुख रहा है। सन् 1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद कर्पूरी ठाकुर अपने गाँव लौट आये और एक शिक्षक के रूप में काम शुरू किया। कुछ समय के बाद, उन्होंने 1952 में सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में बिहार विधानसभा के ताजपुर निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़े और जीत हासिल की।

वे अपने राजनितिक जीवन में एक बार बिहार के उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख़्यमंत्री बने। लेकिन किसी में भी अपना कार्यकाल पूरा न कर पाये थे । 1970 मे प्रथम बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली लेकिन उनका कार्यकाल केवल 163 दिन का रहा था । वहीं जब दूसरी बार मुख्यमंत्री सन 1977 में बने तो ये  कार्यकाल भी अधूरा ही रहा था ।

लेकिन अपने इस राजनितिक जीवन में ईमानदार छवि, गरीबों और वंचितों के उत्थान के लिए आवाज को उठान, बुलंद करने और अपने दूरदर्शी नेतृत्व के कारण कर्पूरी ठाकुर जी का नाम बिहार की राजनीतिक  इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गया।

कर्पूरी ठाकुर के महत्वपूर्ण कार्य:

हिंदी मातृ भाषा की अनिवार्यता पर  जोर दिया:

उस समय बिहार राज्य सरकार में सूचना का आदान प्रदान अंग्रेजी भाषा में हुआ करता था, कर्पूरी ठाकुर ने हिंदी भाषा के महत्त्व को समझते हुवे बिहार में अंग्रेजी में पत्राचार की अनिवार्यता को समाप्त किया। उनके इसी प्रयास के कारण बिहार के सभी विभागों में हिंदी में पत्राचार का कार्य प्रारम्भ हुआ। इसके साथ ही उन्होंने अपने प्रयास के द्वारा बिहार में मैट्रिक तक मुफ्त पढ़ाई की घोषणा की थी और मैट्रिक पाठ्यक्रम से अंग्रेजी को अनिवार्य विषय से हटा दिया था इसके साथ ही मिशनरी स्कूलों में हिंदी पढ़ाने की सुरुवात की गई।

पिछड़ी जातियों के हित के लिए कार्य किया था:

उन्होंने पिछड़ी जातियों के आरक्षण के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी थी उनके इसी अथक प्रयासों के फलस्वरूप 1978 में बिहार में सरकारी सेवाओं में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण का मार्ग प्रशस्त किया जो आगे जाकर 1990 में मंडल आयोग की रिपोर्ट के कार्यान्वयन की आधारशिला बानी थी।

मजदूरों के हित के लिए अनशन करना:

1960 में पी एंड टी के सरकारी कर्मचारियों के हड़ताल का नेतृत्व किया था जिसके लिए उनको गिरफ्तार किया गया था। सन् 1970 में, टेल्को मजदूरों के हितों को बढ़ावा देने के लिए 28 दिनों का आमरण अनशन किया था।

कर्पूरी ठाकुर जी के अन्य रोचक जानकारी:

  • बिहार के शिक्षा मंत्री के रूप में, ठाकुर ने मैट्रिक पाठ्यक्रम से अंग्रेजी को अनिवार्य विषय से हटा दिया।
  • 1970 में बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी समाजवादी मुख्यमंत्री बनने से पहले, ठाकुर ने बिहार के मंत्री और उपमुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया।
  • उन्होंने अपने मंत्री काल में बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू की.
  • उनके शासनकाल में बिहार के पिछड़े इलाकों में उनके नाम पर कई स्कूल और कॉलेज स्थापित किये गये।
  • वे समाजवादी नेता – ठाकुर जय प्रकाश नारायण के बहुत करीबी थे।
  • भारत में आपातकाल (1975-77) के दौरान, उन्होंने और जनता पार्टी के अन्य प्रमुख नेताओं ने भारतीय समाज के अहिंसक परिवर्तन के उद्देश्य से “संपूर्ण क्रांति” आंदोलन का नेतृत्व किया।
  • जुलाई 1979 में जब जनता पार्टी विभाजित हो गई, तो कर्पूरी ठाकुर निवर्तमान चरण सिंह गुट के साथ चले गए और 1980 के चुनावों में वे जनता पार्टी (सेक्युलर) के उम्मीदवार के रूप में बिहार विधानसभा के लिए समस्तीपुर (विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र) से चुने गए। उनकी पार्टी ने बाद में अपना नाम बदलकर भारतीय लोक दल कर लिया, और ठाकुर 1985 के चुनाव में सोनबरसा निर्वाचन क्षेत्र से बिहार विधानसभा के उम्मीदवार के रूप में चुने गए।
  • अपनी भत्ता के अलावा वह एक पैसा किसी से नहीं लेते थे।
  • कर्पूरी जी बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे।

कर्पूरी ठाकुर जी से जुडी कुछ रोचक घटना जो उनको महान बनाता है:

मुख्यमंत्री रहते हुवे वे कभी भी व्यक्तिगत कार्य के लिए सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल नहीं किये:

एक बार अपनी बेटी के लिए लड़का देखने के लिए उन्हें रांची जाना था,  इसके लिए उन्होंने मुख्यमंत्री की सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल नहीं किया और भाड़े पर टैक्सी से  वे रांची गए थे।

बीमार पत्नी के लिए रिक्शा किराये पर लेना:

एक बार उनकी धर्म पत्नी बीमार पड़ गईं, जिस पर अधिकारी लोगों ने उनसे मुख्यमंत्री की आधिकारिक कार से डॉक्टर के पास ले जाने का अनुरोध किया, लेकिन कर्पूरी ठाकुर जी ने उनके अनुरोध को अस्वीकार कर किराए के रिक्शा लेकर  अपनी पत्नी को नजदीकी अस्पताल ले गये।

दान की गई ईंटों से स्कूल को बनाना:

एक बार उनको अपना घर बनाने के लिए 50 हजार ईंटें भेजी गईं थी लेकिन उन्होंने इन ईंटों से अपना घर नहीं बना कर इन ईंटों से विद्यालय का निर्माण किये।

अपने बहनोई को सिफारिश करने के बदले 50 रुपये दिये:

एक बार उनके बहनोई उनके पास आए और कहा कि आप सिफारिश करके नौकरी लगवा दीजिए।  लेकिन उन्होंने अपनी ईमानदारी का परिचय देते हुवे  50 रुपया अपनी जेब से निकालकर उनको दिया और कहा कि इन पैसों से अपना पुश्तैनी धंधा बाल दाढ़ी बनाने का सामान खरीद कर काम करिये।

भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर जी (Karpuri Thakur) को  देकर भारत रत्न की शोभा बढ़ी है:

कर्पूरी ठाकुर जी (Karpuri Thakur) एक ईमानदार, सागदीपूर्ण और सरल नेता थे। वे अपने सिद्धांतों के पक्के धनी व्यक्ति थे। वे एक महान कर्मयोगी और जन के नायक थे। ऐसे महान दिव्य कर्म योगी को भारत सरकार ने भारत रत्न देकर भारत रत्न की शोभा को बढ़ाया है। अब हम कर्पूरी ठाकुर जी की ही कविता से इस लेख को विराम दे रहे हैं जो उन्होंने  आजादी की लड़ाई के दौरान लिखी थी.

“हम सोए वतन को जगाने चले हैं, हम मुर्दा दिलों को जिलाने चले हैं”

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