Chhath Puja Significance (छठ पूजा का महत्व):
हर साल दीपावली के कुछ ही दिनों बाद, बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई इलाकों में आस्था का सबसे अनुशासित पर्व मनाया जाता है — छठ पूजा।
परिवार की महिलाएँ (जिन्हें व्रती कहा जाता है) निर्जला उपवास रखकर अस्ताचलगामी और उगते सूर्य की उपासना करती हैं।
यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि अनुशासन, आस्था और प्रकृति के प्रति आभार का प्रतीक है। आप सोचिए दोस्तों — आखिर छठ पूजा क्यों मनाई जाती है (Why Chhath Puja is celebrated)? क्या यह सिर्फ परंपरा है या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण भी छिपा है?
यही कारण है कि Chhath Puja Significance हर वर्ष और भी प्रासंगिक बन रहा है। यह पर्व सिर्फ एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह बताता है कि Why Chhath Puja is celebrated — ताकि मानव जीवन सूर्य की ऊर्जा, आत्मिक संतुलन और प्रकृति की लय के अनुरूप चल सके।
इसी का उत्तर खोजते हैं इस लेख में — जहाँ हम जानेंगे कि Chhath Puja Significance क्या है, इसकी कथा, सूर्य उपासना का महत्व (Importance of Sun Worship), और इसके वैज्ञानिक (scientific) व आध्यात्मिक (spiritual) पहलू किस तरह मानव जीवन से जुड़े हैं।
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छठ पूजा का इतिहास — वैदिक काल से आधुनिक युग तक की यात्रा:
Chhath Puja (छठ पूजा) आस्था, भक्ति और आध्यात्मिकता का त्योहार है और इसे सबसे पुराने हिंदू त्योहारों में से एक माना जाता है, जो वैदिक काल से चला आ रहा है। अन्य हिंदू पर्वों के विपरीत, इसमें मूर्ति-पूजा शामिल नहीं होती — यह एक ऐसा पर्व है जो सीधे प्रकृति और ऊर्जा की उपासना पर आधारित है।
यह पर्व सूर्य देव और उनकी बहन षष्ठी देवी (छठी मैया) को समर्पित है। गंगा नदी के किनारे रहने वाले लोग, विशेषकर बिहार और उत्तर प्रदेश के निवासी, पृथ्वी पर जीवन और प्रकाश प्रदान करने के लिए सूर्य देव और षष्ठी मैया को धन्यवाद देते हैं।
इस पर्व का पहला उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है, जहाँ वैदिक ऋषि सूर्य की किरणों को आध्यात्मिक और शाश्वत ऊर्जा का स्रोत मानते थे। रामायण में उल्लेख है कि अयोध्या लौटने के बाद माता सीता ने राम के राज्याभिषेक की खुशी में छठ व्रत रखा और सूर्य देव को अर्घ्य दिया।
महाभारत में द्रौपदी ने सूर्य की उपासना की थी ताकि पांडवों को अपना राज्य पुनः प्राप्त हो सके — इसलिए यह पर्व नारी-शक्ति, श्रद्धा और पुनर्निर्माण का प्रतीक भी है।
सूर्य पुत्र कर्ण का नाम भी इस पूजा से जुड़ा है। कर्ण प्रतिदिन गंगा नदी में स्नान कर सूर्य को अर्घ्य देते थे, और इसी भक्ति से उन्हें अपार शक्ति और तेज प्राप्त हुआ। आज भी व्रती जल में खड़े होकर सूर्य की आराधना करते हैं — जैसे कर्ण ने किया था।
वैदिक कथाओं से स्पष्ट है कि Chhath Puja Significance सदियों से मानव सभ्यता में सूर्य उपासना का सबसे सशक्त उदाहरण रहा है। एक अन्य कथा के अनुसार, यह दिन षष्ठी देवी, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री और प्रजनन-शक्ति की देवी मानी जाती हैं, उनके अवतार से जुड़ा है। कहा जाता है कि उन्होंने राजा प्रियव्रत के मृत पुत्र को पुनर्जीवित किया था। तभी से षष्ठी देवी की पूजा का प्रचलन हुआ और बाद में यह पर्व “छठ मैया पूजा” के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यही सूर्य उपासना का महत्व है जो वैदिक काल से आज तक हमारी संस्कृति की ऊर्जा को जीवित रखे हुए है।

छठ पूजा की उत्पत्ति और लोकमान्यता:
एक लोकप्रिय लोककथा के अनुसार, छठ पूजा सूर्य देव की दो पत्नियों — उषा और प्रत्यूषा — की उपासना से भी जुड़ी है। ‘उषा’ का अर्थ है दिन की पहली किरण और ‘प्रत्यूषा’ का अर्थ है दिन की आखिरी किरण। इसी कारण इस पर्व में उगते और डूबते सूर्य दोनों की पूजा की जाती है।
बिहार और उत्तर प्रदेश में यह त्योहार मातृत्व, कृतज्ञता और तपस्या का संगम माना जाता है। मिथिला क्षेत्र में छठी मैया को षष्ठी देवी के रूप में पूजा जाता है और कहा जाता है कि वे कार्तिकेय देव की पत्नी देवसेना के रूप में भी पूजनीय हैं। इस प्रकार छठ पूजा धर्म, लोक और इतिहास — तीनों का अद्भुत संगम है।
छठ पूजा क्यों मनाई जाती है — सूर्य उपासना का महत्व (Importance of Sun Worship in Chhath Puja):

सूर्य ही वह ऊर्जा है जिससे पृथ्वी पर जीवन संभव है। हम सांस लेते हैं, अन्न खाते हैं, पानी पीते हैं — सब सूर्य की कृपा से। सूर्य वह ऊर्जा हैं जिससे पृथ्वी पर जीवन संभव है। हमारा अन्न, वायु, जल — सब उनकी कृपा का परिणाम है, छठ पूजा इस सत्य को स्वीकार करने और कृतज्ञता प्रकट करने का पर्व है। यह केवल व्रत नहीं, बल्कि प्रकृति, ऊर्जा और आत्मा — तीनों के बीच के संतुलन की साधना है।
यह केवल व्रत नहीं, बल्कि प्रकृति, ऊर्जा और आत्मा — तीनों के संतुलन की साधना है। अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य देना यह सिखाता है कि ढलता हुआ समय भी पूजनीय है, जबकि उगते सूर्य को अर्घ्य देना नए आरंभ और पुनर्जन्म का प्रतीक है।
इसीलिए Chhath Puja Significance हमें यह सिखाता है कि सूर्य के बिना जीवन संभव नहीं। यह पूजा हमें सिखाती है कि जीवन में उतार और चढ़ाव दोनों ही आवश्यक हैं — क्योंकि हर अस्त के बाद एक नया उदय होता है।
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नहाय-खाय से उषा अर्घ्य तक — चार दिनों का आध्यात्मिक अनुशासन (Chhath Puja 2025 Dates & Rituals):
छठ पूजा 2025 का चार दिवसीय पर्व इस वर्ष 26 अक्टूबर (रविवार) से 29 अक्टूबर (बुधवार) तक मनाया जाएगा। हर दिन का अर्थ धार्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक, सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह अनुशासन, संयम और श्रद्धा का अद्भुत संगम है — जहाँ हर चरण मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि के लिए नया अर्थ लेकर आता है।
1️⃣ नहाय–खाय (Purification) 26 अक्टूबर 2025, रविवार
इस दिन छठ पर्व का शुभारंभ होता है। व्रती सुबह स्नान कर घर की पूरी शुद्धि करते हैं और दिन भर केवल सात्विक भोजन करते हैं। आमतौर पर लौकी-भात और चने की दाल इस दिन का प्रसाद मानी जाती है।
यह चरण शरीर की शुद्धि का पहला कदम है — एक तरह का आध्यात्मिक डिटॉक्स, जो आने वाले कठिन उपवास की तैयारी कराता है। इस दिन नदी, तालाब या गंगा तट पर स्नान का विशेष महत्व है, क्योंकि यह व्रती के भीतर से नकारात्मकता को धो देता है और मन को स्थिर बनाता है।
2️⃣ खरना (Fasting with Faith), 27 अक्टूबर 2025, सोमवार
दूसरे दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं — न अन्न, न जल। शाम को सूर्यास्त के समय गुड़-चावल की खीर, पूड़ी और केला का प्रसाद बनाया जाता है। इस प्रसाद को खरना का भोग कहा जाता है, जो अत्यंत पवित्र माना जाता है।
इस दिन व्रती आत्मिक शांति के साथ संकल्प लेते हैं कि वे अगले दो दिन पूर्ण उपवास रखेंगे। यह व्रत केवल शरीर का नहीं, बल्कि मन का अनुशासन भी है — जो व्रती को आत्मसंयम और धैर्य की चरम सीमा तक पहुँचाता है। यह दिन परिवार और समाज में एकता, शुद्धता और समर्पण की भावना को भी दर्शाता है।
3️⃣ संध्या अर्घ्य (Evening Offering)

यह छठ पूजा का सबसे मनोहर दृश्य होता है। सांझ ढलते ही व्रती अपने परिवार और सैकड़ों श्रद्धालुओं के साथ नदी या तालाब के तट पर पहुँचते हैं। व्रती जल में खड़े होकर अस्ताचलगामी सूर्य (Setting Sun) को अर्घ्य देते हैं। इस समय ठेकुआ, ईख, केला और नारियल का प्रसाद अर्पित किया जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टि से यह समय अत्यंत लाभदायक है — क्योंकि सूर्य की किरणें इस समय UV rays से मुक्त होती हैं, और जल में खड़े होकर सूर्य की ऊर्जा ग्रहण करना शरीर के लिए बेहद हितकारी होता है।
घाट पर लोकगीतों की मधुर ध्वनि — “कांच ही बांस के बहंगिया”, और दीपों की कतारें वातावरण को आध्यात्मिक प्रकाश से भर देती हैं। यह क्षण व्रती के संयम, श्रद्धा और विश्वास की पराकाष्ठा का प्रतीक है।
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4️⃣ उषा अर्घ्य (Morning Offering)

अंतिम दिन व्रती भोर से पहले घाट पर पहुँचते हैं। उगते सूर्य के प्रथम दर्शन के साथ ही उषा अर्घ्य दिया जाता है। यह छठ व्रत की पूर्णता का प्रतीक होता है।
व्रती सूर्य को अर्घ्य देकर अपने परिवार की सुख-शांति और समृद्धि की कामना करते हैं। सूर्य की पहली किरण जब अर्घ्य के जल में प्रतिबिंबित होती है, तो ऐसा लगता है मानो सम्पूर्ण सृष्टि ऊर्जा से आलोकित हो उठी हो।
इस अर्घ्य के बाद व्रती व्रत का पारण करते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं — यह केवल व्रत की समाप्ति नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि और पुनर्जन्म का प्रतीक है। पारण के बाद व्रती नए सवेरा, नई ऊर्जा और नई श्रद्धा के साथ जीवन में पुनः प्रवेश करता है।
अगर आप छठ पूजा के चारों दिनों के क्रम, विधि और तिथियों ( Chhath Puja Significance) को विस्तार से समझना चाहते हैं, यह विस्तृत लेख ज़रूर पढ़ें — “Chhath Puja 2025 Date Time Vidhi: छठ पूजा 2025 की तिथि और विधि | नहाय-खाय से उषा अर्घ्य तक का आध्यात्मिक सफर”
सूर्य उपासना का आध्यात्मिक अर्थ (सूर्य उपासना का महत्व):
छठ पूजा का यह चार दिवसीय क्रम व्यक्ति को एक पूर्ण साधना की ओर ले जाता है — जहाँ वह शरीर, मन, आत्मा और प्रकृति — चारों स्तरों पर संतुलन स्थापित करता है।
- नहाय-खाय शरीर की शुद्धि है,
- खरना मन की तपस्या,
- संध्या अर्घ्य आत्मा की कृतज्ञता,
- और उषा अर्घ्य ऊर्जा का पुनर्जन्म।
इस प्रकार, Chhath Puja Significance केवल पूजा तक सीमित नहीं, बल्कि यह जीवन के हर चरण को शुद्ध करने और संतुलन में लाने की आध्यात्मिक प्रक्रिया है।
सूर्य उपासना का वैज्ञानिक पहलू (Scientific Reasons of Chhath Puja):
दोस्तों, अब जरा सोचिए — व्रती जब पानी में खड़े होकर सूर्य की किरणों को जल के माध्यम से ग्रहण करते हैं, तो यह एक प्राकृतिक energy balancing process है।
- विटामिन D का प्राकृतिक अवशोषण — त्वचा के लिए लाभदायक।
- जल में खड़े रहना — शरीर की नकारात्मक ऊर्जा को बाहर निकालता है, “ग्राउंडिंग” का कार्य करता है।
- प्राणायाम और ध्यान के साथ सूर्य दर्शन — मनोवैज्ञानिक रूप से तनाव कम करता है, ध्यान शक्ति बढ़ाता है।
- उगते और अस्त होते सूर्य के समय की रोशनी — “Circadian rhythm” को नियमित करती है, जिससे नींद और metabolism सुधरता है।
आधुनिक विज्ञान भी Chhath Puja Significance को ऊर्जा और संतुलन का पर्व मानता है। जिसमें sunrise और sunset के समय सूर्य की किरणों का exposure शरीर में positive hormones बढ़ाता है — यही कारण है कि Why Chhath Puja is celebrated सिर्फ श्रद्धा का नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और विज्ञान का भी पर्व है।
व्रत के दौरान अन्न, नमक और पानी का त्याग — दरअसल यह शरीर के टॉक्सिन्स को फ्लश करने की प्राचीन प्राकृतिक प्रक्रिया है। यह व्रत “detox fasting” का भारतीय स्वरूप है, जिसका आज विज्ञान भी समर्थन करता है।
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आध्यात्मिक दृष्टि से सूर्य उपासना का महत्व:
छठ पूजा केवल शरीर की शुद्धि नहीं, बल्कि आत्मा के उत्थान का भी माध्यम है। जब कोई व्रती चार दिनों तक आत्मनियंत्रण में रहता है —तो उसका मन, वाणी और कर्म — तीनों सदाचार की ओर मुड़ते हैं।
यह पर्व सिखाता है कि अनुशासन और श्रद्धा से किया गया कोई भी कर्म आध्यात्मिक ऊर्जा में बदल जाता है। छठ व्रती का चेहरा उस समय तेजस्वी हो जाता है क्योंकि उसने भीतर की ऊर्जा को केंद्रित कर लिया होता है। भक्ति और ध्यान का यह रूप व्यक्ति को भीतर से मजबूत बनाता है — यही छठ की आध्यात्मिक सार्थकता है।
सूर्य उपासना का महत्व और मातृशक्ति का प्रतीकात्मक अर्थ:
इस पर्व में महिलाओं की भूमिका केंद्रीय होती है। वे अपने परिवार और समाज के लिए प्रार्थना करती हैं, बिना किसी स्वार्थ के। यह मातृत्व की सर्वोच्च अभिव्यक्ति है — त्याग में शक्ति, और संयम में सौंदर्य। हर घाट पर, हर नदी किनारे यह संदेश छिपा होता है कि स्त्री ही जीवन की ऊर्जा है, और सूर्य उसका प्रतीक।
आज भी बिहार और पूर्वांचल के गाँवों में व्रती महिलाएँ घाट पर अपने परिवार के नाम से दीप जलाती हैं, जो पीढ़ियों की परंपरा का प्रतीक है। यह समर्पण, धैर्य और शक्ति का संगम है — यही छठ की आध्यात्मिक आत्मा है।
बिहार से विश्व तक — छठ पूजा की वैश्विक पहचान:
अब यह पर्व बिहार या पूर्वांचल तक सीमित नहीं रहा। दुबई, लंदन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और नेपाल तक Chhath Puja Significance की गूंज सुनाई देती है। विदेशों में बसे भारतीय समुदाय नदी किनारों पर कृत्रिम तालाब बनाकर अर्घ्य देते हैं। यह परंपरा अब “Global Indian Spirit” का प्रतीक बन चुकी है।
छठ अब सिर्फ पूजा नहीं, बल्कि “Indian Cultural Diplomacy” का हिस्सा बन गई है — जहाँ सूर्य उपासना के माध्यम से भारतीय सभ्यता का संदेश विश्व तक पहुँच रहा है।
छठ पर्व और पर्यावरण — धरती के प्रति सम्मान:
छठ पूजा में प्लास्टिक या प्रदूषक सामग्री का उपयोग नहीं किया जाता। सभी प्रसाद — जैसे ठेकुआ, केला, नारियल, गन्ना, फल — प्राकृतिक और बायोडिग्रेडेबल होते हैं। इससे यह पर्व पर्यावरण संरक्षण का भी सशक्त उदाहरण बन जाता है।
सूर्य की उपासना, नदी की पूजा और मिट्टी के दीए — ये सब हमें याद दिलाते हैं कि प्रकृति ही परमात्मा है। यही कारण है कि छठ को अब Eco-friendly festival के रूप में भी सराहा जाता है।
छठ पूजा क्यों मनाई जाती है- वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रहस्य का संगम:
Chhath Puja Significance को समझने पर यह साफ होता है कि यह सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक समग्र जीवन दर्शन (holistic life science) है।
सूर्य को धन्यवाद देना, शरीर को शुद्ध करना, आत्मा को अनुशासित रखना — ये तीनों मिलकर मनुष्य को संतुलित और सकारात्मक बनाते हैं। यह व्रत व्यक्ति को सिखाता है कि भक्ति और विज्ञान विरोधी नहीं हैं — बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं।
सूर्य उपासना का महत्व— सूर्य, श्रद्धा और विज्ञान का अनूठा संगम:

दोस्तों, अगर हम सोचें तो Why Chhath Puja is celebrated का उत्तर बहुत सरल है — यह पर्व जीवन के हर पहलू को संतुलित करने की साधना है। यह हमें सिखाता है कि सूर्य उपासना का महत्व (Importance of Sun Worship) केवल पूजा तक सीमित नहीं, बल्कि यह शरीर, मन और आत्मा — तीनों की समरसता का प्रतीक है।
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Chhath Puja Significance 2025 इसलिए विशेष है क्योंकि यह हमें याद दिलाता है कि प्रकृति के प्रति आभार ही सच्ची पूजा है। जब हम सूर्य को अर्घ्य देते हैं, तो हम दरअसल अपनी ऊर्जा, अपनी चेतना और अपनी मानवता को प्रणाम कर रहे होते हैं।
छठ हमें सिखाता है कि “ विज्ञान जब भक्ति से जुड़ता है, तो जीवन स्वयं एक पूजा बन जाता है। और यही छठ का सार है — अनुशासन में भक्ति, भक्ति में विज्ञान, और विज्ञान में आध्यात्मिकता का संगम।
संदर्भ / References:
1️⃣ Chhath Puja | Encyclopaedia Britannica
2️⃣ Chhath Puja: Origin of the Festival – Sahapedia
3️⃣ ResearchGate – Human-Nature Connections: The Chhath Sun Festival
4️⃣ IJFMR Journal – Importance of Chhath Puja in Bihar’s Culture & Economy
FAQ: छठ पूजा से जुड़े सामान्य प्रश्न-
Q1. छठ पूजा क्यों मनाई जाती है?
Ans. छठ पूजा सूर्य देव और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का पर्व है। यह शरीर, मन और आत्मा के संतुलन का प्रतीक है।
Q2. छठ पूजा का वैज्ञानिक कारण क्या है?
Ans. सूर्य की किरणें सुबह और शाम के समय शरीर में ऊर्जा संतुलन बनाती हैं। उपवास शरीर को डिटॉक्स करता है और मन को शुद्ध करता है।
Q3. छठ पूजा में चार दिन क्या किया जाता है?
Ans. नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य — चार दिन शुद्धि, संयम और उपासना के प्रतीक हैं।
Q4. छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य क्यों (छठ पूजा क्यों मनाई जाती है) दिया जाता है?
Ans. क्योंकि सूर्य जीवन, ऊर्जा और प्रकाश का स्रोत हैं। छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देकर हम जीवनदाता के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं।
Q5. छठ पूजा में डूबते सूर्य की पूजा क्यों की जाती है?
Ans. अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देना जीवन के हर चरण का सम्मान करना है। यह संदेश देता है कि ढलता हुआ समय भी पूजनीय है।
Q6. छठ पूजा कब शुरू होती है और कब समाप्त होती है?
Ans. यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। चार दिन चलने वाला यह व्रत नहाय-खाय से शुरू होकर उषा अर्घ्य के साथ समाप्त होता है।
Q7. छठ पूजा में क्या खाना मना होता है?
Ans. पूरे व्रत के दौरान व्रती प्याज, लहसुन, मांस, मछली या किसी भी प्रकार के तामसिक भोजन का सेवन नहीं करते। भोजन शुद्ध, सात्विक और घर में बना होना चाहिए।
Q8. क्या पुरुष भी छठ पूजा कर सकते हैं?
Ans. जी हाँ, छठ पूजा केवल महिलाओं तक सीमित नहीं है। पुरुष भी इसे समान श्रद्धा से करते हैं और कई स्थानों पर व्रत निभाते हैं।
Q9. छठ पूजा का पर्यावरण से क्या संबंध है?
Ans. छठ पूजा Eco-Friendly Festival है। इसमें बायोडिग्रेडेबल सामग्री का उपयोग होता है और यह नदी, मिट्टी और सूर्य के प्रति सम्मान सिखाता है।
Q10. क्या छठ पूजा बिहार के बाहर भी मनाई जाती है?
Ans. बिलकुल! आज यह पर्व दुनिया भर में मनाया जाता है — दिल्ली, मुंबई से लेकर लंदन, मॉरीशस, फिजी और त्रिनिदाद तक।



